बाल भक्त की मनुहार, प्रभु का ममतामई दुलार कष्ट के समय इष्ट के कवच का सहारा टेसू का रंग अपनो के संग भर दे जीवन में नई उमंग, इत्र की फुहार वैमनस्य मिटाए मित्रता बढाए है ऐसा फागुन का त्यौहार ।

मित्रों उपरोक्त पंक्तियों से यह हमें उद्धृत होता है कि होली जैसा त्योहार अपने अंदर कितने भाव छुपाए हुए हैं एवं इन पंक्तियों में आध्यात्म एवं प्रेम रस का आभास होता है आज मैं आपका धान होली का ज्योतिषीय महत्व की ओर आकर्षित करना चाहूंगा । मित्रों जैसा की सर्वविदित है कि होली त्यौहार से भक्त प्रहलाद एवं राक्षस हिरण्यकशिपु की पौराणिक कथा भारतवर्ष का बच्चा-बच्चा विदित है। फाल्गुन माह की पूर्णिमा को प्रदोष वेला में हिरण्यकश्यप की बहन होलिका अपने अग्नि के भीतर कुछ भी ना हो सकने वाले वरदान के दंभ में भक्त प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि स्नान करने लगी किंतु आशा के विपरीत होलीका अग्नि में जलकर भस्म हो गई । भक्त प्रहलाद इस कृपा रूपी कवच से सकुशल जीवित लोटा और इसीलिए यह त्योहार मनाया जाता है । इस पौराणिक कथा को अगर ज्योतिषीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो हमें या आभास होगा कि क्यों हमारा ध्यान इस ओर नहीं गया । यह तो ज्योतिष की थोड़ी जानकारी रखने वाला भी जानता है कि पृथ्वी पर जीवन चक्र की उत्पत्ति  एवं चलाने में सूर्य और चंद्रमा का कितना अहम योगदान है । सूर्य आत्मा है जो देवत्व का प्रतीक भी है एवं चंद्र मन  का प्रतीक है जो चंचल होता है और पुराणों एवं शास्त्रों में चंद्रमा को परम भक्त का दर्जा मिला है फागुन की पूर्णिमा पर सूर्य कुंभ राशि में  पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में होता है जिसका स्वामी बृहस्पति है एवं चंद्रमा  सिंह राशि में पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में होता है का स्वामी शुक्र है।  बृहस्पति नेताओं के गुरु हैं एवं शुक्र असुरों के गुरु हैं। अर्थात चंद्रमा अग्नी राशि में एवं शुक्र के नक्षत्र अर्थात आसुरी प्रभाव में होते हुए भी पूर्ण होता है, स्वच्छ एवं निर्मल होता है क्योंकि देवता रूपी सूर्य की पूर्ण दृष्टि चंद्रमा को मिल रही होती है जो उसके चंचल मन को नियंत्रित कर अपना कवच प्रदान करती है एवं उसको पूर्ण करती है।

इसी तरह हमें भी प्रभु की पूर्ण अनुकंपा मिले एवं ग्रहों का शुभ प्रभाव मिले इस हेतु हमें दान पुण्य करना चाहिए । होलिका दहन से पहले होलिका दहन से पहले होलाष्टक होता है जो भक्त से जो भक्त प्रहलाद को दहन से पहले उनको 8 दिन तक और कष्ट दिए गए अतः इन 8 दिनों में कोई भी शुभ कार्य वर्जित है एवं 8 दिन दान पुण्य के लिए जाने जाते हैं सनातन संस्कृति कर्म प्रधान है अर्थात कुछ भी प्राप्त करने में कर्म का अधिक महत्व है आपके कर्म ही फल का प्रकार, योग्यता एवं उसकी उपयोगिता सुनिश्चित करता है । और इसी क्रम में जाने अनजाने में ऐसे कर्म हो जाते हैं जिससे समाज, गांव, शहर अथवा देश विदेश में हमें अपमान, अपयश एवं आक्रोश प्राप्त होता है। भारतीय संस्कृति में दान का विशेष महत्व है किस राशि को कौन से रत्न का दान करने से पुण्य प्राप्त होगा आगे हम बताते हैं।

1) मेष लग्न राशि का पुण्य रत्न है माणिक्य आप होलिका दहन के रोज माणिक्य का योग्य ब्राह्मण को दान करें।

2) वृषभ लग्न राशि का पुण्य रत्न है पन्ना आप इस दिन पढ़ने का  दान करें।

3) मिथुन लग्न राशि वाले हीरा अथवा नेचुरल जरीकेन का दान करें।

4) कर्क लग्न राशि वाले मुंगे का दान करें।

5) सिंह लग्न राशि वालों का पुण्य रत्न पुखराज है इस दिन पुखराज का दान करें।

6) कन्या लग्न राशि वाले पुण्य रत्न नीलम अथवा उपरत्न नीली का दान करें।

7) तुला लग्न राशि वाले भी नीलम अथवा उपरत्न नीली का दान करें।

8) वृश्चिक लग्न राशि वाले पुखराज का दान करें।

9) जिनकी लग्न राशि धनु है वह मुंगे का दान करें। ‌

10) मकर लग्न राशि वाले हीरा अथवा नेचुरल जरीकेन का दान करें।

11) कुंभ लग्न राशि वाले पन्ना का दान करें।

12)मीन राशि वाले अपने पुण्य रत्न मोती का दान करें।

आप जिस ग्रह कि महादशा चल रही हो उसके कुप्रभाव को कम करने के लिए उस रत्न का भी दान कर सकते हें ।

सभी पाठकों को होली एवं धुलंडी की हार्दिक शुभकामनाएं।

शुभम भवतु

पं. जयन्त रावल

ज्योतिष गणेशा