या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः, पापात्मनां कृतधियां हृदयेषुबुद्धिः।
श्रद्धा सतांकुलजन प्रभवस्य लज्जा, तां त्वां नताः स्म परिपालय देवी विश्वम् ।।
देवी पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मी रूप में, पापियों के यहां दरिद्रता रूप में, शुद्धान्तःकरण वाले पुरुषों के हृदय में बुद्धि रूप में, सत्पुरूषों में श्रद्धा रूप में तथा कुलीन मनुष्यों में लज्जा रूप में निवास करती है, उन भगवती को हम सब श्रद्धापूर्वक नमन करते हैं। हे पराम्बा! समस्त विश्व का कल्याण कीजिए। नवरात्र को आद्या शक्ति की आराधना का सर्वश्रेष्ठ काल माना गया है। संवत्सर (वर्ष) में चार नवरात्र होते हैं। चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक नौ दिन नवरात्र कहलाते हैं। इन चार नवरात्रों में दो गुप्त और दो प्रकट, चैत्र का नवरात्र वासन्तिक और आश्चिन का नवरात्र शारदीय ।
नौ कलाएं कहलाती हैं नवदुर्गा
भगवान आदि शंकराचार्य विरचित-विश्व साहित्य के अमूल्य एवं दिव्यतम ग्रन्थ ‘सौंदर्य लहरी’ में माता पार्वती के पूछने पर भगवान शंकर नवरात्र का परिचय इस प्रकार देते हैं- ‘नवशक्ति भिः संयुक्तम् नवरात्रंतदुच्यते। एकैवदेव देवेशि नवधा परितिष्ठता”।। अर्थात् नवरात्र नौ शक्तियों से संयुक्त है। नवरात्र के नौ दिनों में प्रतिदिन एक शक्ति की पूजा का विधान है। सृष्टि की संचालिका कही जाने वाली आदि शक्ति की नी कलाएं (विभूतियां) नव दुर्गा कहलाती है
देवी भागवत में नवकन्याओं को नवदुर्गा का प्रत्यक्ष विग्रह बताया गया है। उसके अनुसार नवकुमारियां भगवती के नवस्वरूपों की जीवंत मूर्तियां है। इसके लिए दो से दस वर्ष तक की कन्याओं का चयन किया जाता है। दो वर्ष की कन्या ‘कुमारिका’ कहलाती है, जिसके पूजन से धन-आयु-बल की वृद्धि होती है। तीन वर्ष की कन्या ‘त्रिमूर्ति’ कही जाती है।
इसके पूजन से घर में सुख-समृद्धि का होता है। चार वर्ष की कन्या ‘कल्याणी’ के पूजन से विवाह आदि मंगल कार्य संपन्न होते हैं। पांच वर्ष की कन्या ‘रोहिणी’ की पूजा से स्वास्थ्य लाभ होता है। छह वर्ष की कन्या ‘कालिका’ के पूजन से शत्रु का दमन होता है। सात वर्ष की कन्या ‘चण्डिका’ की पूजा से कार्य सिद्धिप्राप्त होती है।आठ वर्ष की कन्या ‘शांभवी’ के पूजन से दुःख-दरिद्रता का नाश होता है। नौ वर्ष की कन्या ‘दुर्गा’ पूजन से असाध्य रोगों का शमन और कठिन कार्य सिद्ध होते हैं। दस वर्ष की कन्या ‘सुभद्रा’ पूजन से मोक्ष की प्राप्ति होती है। देवी भागवत में इन नौ कन्या को कुमारी नवदुर्गा की साक्षात प्रतिमूर्ति माना गया है। दस वर्ष से अधिक आयु की कन्या को कुमारी पूजा में सम्मिलित नहीं करना चाहिए। कन्या पूजन के बिना भगवती महाशक्ति कभी प्रसन्न नहीं होतीं।
इस बार नवरात्रि पर्व बेहद खास होगा। इस साल नवरात्रि सोमवार से शुरू हो रही है। ऐसा माना जाता है कि सोमवार से जब भी नवरात्रि शुरू होती है तो देवी दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं। देवी दुर्गा का हाथी पर सवार होकर आना शुभ माना जाता है। इस प्रकार इस बार मां दुर्गा का आगमन अपार सुख-समृद्धि लेकर आएगा। यह शांति और खुशी का माहौल बनाता है। ज्योतिष शास्त्र अनुसार इस वर्ष का नवरात्रि का त्योहार भारत और भारत के नागरिकों के लिए शुभ साबित होगा। इसलिए इस बार की नवरात्रि को बेहद खास माना जा रहा है।
- माना जाता है कि देवी दुर्गा ने राक्षस महिषासुर के साथ नौ दिनों तक युद्ध किया और अंतिम दिन, जब उन्होंने राक्षस का सिर काट दिया, इसे विजय दशमी कहा जाता है। इस दिन एक बड़ा जुलूस आयोजित किया जाता है जहां दुर्गा की मिट्टी की मूर्तियों को एक नदी या समुद्र में औपचारिक रूप से विसर्जित किया जाता है।
- नवरात्रि की एक कथा भगवान श्रीराम से भी जुड़ी है। उसके अनुसार, जब श्रीराम ने वानरों की सेना लेकर लंका पर हमला किया तो उन्होंने राक्षसों की सेना का सफाया कर दिया। सबसे अंत में रावण युद्ध के लिए आया। रावण और श्रीराम के बीच भयंकर युद्ध शुरू हो गया। रावण मायावी विद्या से युद्ध करने लगा। तब श्रीराम ने रावण पर विजय पाने के लिए देवी अनुष्ठान किया, जो लगातार 9 दिन तक चला। अंतिम दिन देवी ने प्रकट होकर श्रीराम को विजय का आशीर्वाद दिया। दसवें दिन श्रीराम ने रावण का वध कर दिया। श्रीराम ने आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तक देवी की साधना कर दसवें दिन रावण का वध किया था। इसलिए इस समय हर साल नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।
- घर के मुख्य द्वार पर आम या अशोक के पत्तों का बंदनवार लगाना ना भूलें. ऐसा करने से घर में मौजूद नकारात्मकता दूर होती है.
- नवरात्रि के पहले दिन से अंतिम दिन कर रोजाना घर के मुख्य द्वार पर दोनों तरफ सिंदूर से स्वास्तिक का चिह्न बनाएं और हल्दी मिला हुआ जल अर्पित करें
- नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के कदमों के निशान घर के अंदर की तरफ जाते हुए लगाएं
- नवरात्र के दौरान पूरे नौ दिन एक तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें गुलाब की पत्तियां और इत्र डालकर घर के मुख्य द्वार पर रखें
- एक ऐसा ही महामंत्र है नवार्ण मंत्र “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे.” नौ अक्षरों वाले इस मंत्र का जाप माता के आशीर्वाद को पाने के लिए विशेष रूप से जाप किया जाता है या “ॐ दुं दुर्गाय नमः” से भी जाप कर सकते हैं।
घटस्थापना तिथि: 22 सितंबर 2025, सोमवार
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ: 21 सितंबर 2025 को दोपहर 03:07 बजे से
प्रतिपदा तिथि समाप्त: 22 सितंबर 2025 को दोपहर 02:55 बजे तक
चूंकि प्रतिपदा तिथि 22 सितंबर की सुबह और दोपहर तक है, इसलिए घटस्थापना के लिए 22 सितंबर का दिन ही उत्तम रहेगा। सुबह का समय शुभ माना जाता है।
घटस्थापना का शुभ समय (मुहूर्त):
प्रात: 06:12 AM से 10:22 तक
अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12:04 से 12:52 तक (यह समय भी अत्यंत शुभ माना जाता है)
महाष्टमी पर सन्धि पूजा का मुहूर्त
अष्टमी तिथि प्रारंभ: 29 सितंबर 2025 को सायं 04:31 बजे से
अष्टमी तिथि समाप्त: 30 सितंबर 2025 को सायं 06:31 बजे तक
30 सितंबर 2025 सन्धि पूजा प्रारम्भ सायं 05:42
सन्धि पूजा समाप्त सायं 06:30
महानवमी पर पूजा का मुहूर्त
नवमी तिथि प्रारंभ: 30 सितंबर 2025 को सायं 06:06बजे से
नवमी तिथि समाप्त: 01अक्टुबर 2025 को सायं 07:01 बजे तक
01अक्टुबर 2025 पूजा मुहूर्त दोपहर 12:15 से 03:15
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पं. जयंत रावल
ज्योतिष गणेषा